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हिन्दू देवता क्या हैं और इनका हमारी एस्ट्रोलॉजी से क्या संबंध है?

Writer's picture: Bharat JJJBharat JJJ

इस विषय पर एक विस्तृत पर्चा International Journal of Theology, Philosophy of Science में प्रकाशित किया है https://www.commonprophets.com/hindu-cosmology-modern-psychology/

एस्ट्रोलॉजी | हिन्दू देवता | चेतन मस्तिष्क | तरंगें | मेरूदंड | एस्ट्रोलॉजी | ब्रह्मा भगवान | शिव भगवान | विष्णु भगवान

ऋग्वेद में कहा गया कि विराज से पुरुष पैदा हुआ और पुनः पुरुष से विराज पैदा हुआ (10:90:1, 5).  इसी प्रकार अथर्ववेद में कहा गया कि वह पिता उनका पुत्र बना (19:53:4). दोनों वेद यह कहते हैं कि पुरुष यानी ब्रह्म और भौतिक संसार यानी वीराज यह एक दूसरे से बने हैं. विषय को समझने के लिए हमें अपने चेतन के विज्ञान को समझना पड़ेगा.

हमारे चेतन में प्रमुखत: दो हिस्से हैं--एक मस्तिष्क और दूसरा मेरुदंड. मस्तिष्क हमारे चेतन स्वभाव का स्थान है और मेरुदंड हमारे अचेतन का स्थान है जैसे हमारे हृदय की गति स्वयं चलती रहती है, यह हमारे मस्तिष्क से नहीं चलायी जाती है. यह मेरूदंड से अपने आप गवर्न होती रहती है इसलिए इसे अचेतन कहा जाता है.

हमारे चेतन मस्तिष्क से लगातार तरंगे निकलती रहती है और ये तरंगें चारों तरफ बैठे दूसरे मनुष्यों के चेतन से निकल रही तरंगों से मिल रही है. जैसे दो इलेक्ट्रिकल सर्किट एक दूसरे के बगल हो तो आपस में बातचीत करते हैं.

ऋग्वेद | विराज | अथर्ववेद | भौतिक संसार | अचेतन | चेतन

 

चेतन से तरंगे निकलती है जो सम्पूर्ण विश्व के मनुष्यों ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के जीवों की चेतन तरंगों से जुड़ी हुई है. जिस प्रकार वर्ल्ड वाइड वेब में या व्हाट्सएप ग्रुप में तमाम लोग आपस में जुड़ जाते हैं और उनकी आपसी बातचीत से एक निष्कर्ष निकलता है उसी प्रकार हमारे चेतन की तरंगों का एक सारांश बनता है. इसी प्रकार अचेतन से तमाम तरंगें निकलती है और ये तरंगे दूसरे जीवों से जुड़ती है. जैसे हम सभी का ऐसा अनुभव आता है कि कभी टेलीफोन बजता है तो तुरंत ही समझ में आता है कि किसने किया होगा क्योंकि जिस व्यक्ति ने हमको फोन किया है उसके अचेतन से जो तरंगे निकल रही है वह हमारे अचेतन पर पहुंचती है और हमें बताती है कि मैं तुम्हें फोन कर रहा हूँ.

इस प्रकार हमारा संसार के दूसरे जीवों विशेषकर मनुष्यों से दो प्रकार का संबंध है. एक हमारा चेतन और दूसरा हमारा अचेतन. जो यह चेतन संबंध है यह आपस में जुड़ कर ग्रुप माइंड बनाता है यानि की वैश्विक बुद्धि का निर्माण करता है. अचेतन हमारा सामूहिक अचेतन बनाता है. यदि हम अपने नजदीक के ग्रुप से बढ़ाकर सम्पूर्ण विश्व तक पहुंचा दें यानि घोड़े हैं, भेड़ हैं, गाय हैं, मच्छर हैं इन सब की जो अचेतन तरंगे हैं उनको जब हम एक साथ जोड़ लें और उसका जो सारांश निकले उसे हम वैश्विक अचेतन कह सकते हैं.

वर्ल्ड वाइड वेब | ग्रुप माइंड | अचेतन | चेतन

हमने विराज और पुरुष की बात की थी. कहा गया कि विराज यानी भौतिक संसार से ब्रह्म यानी कि चेतन संसार पैदा हुआ और चेतन संसार विराज का पुत्र भी हुआ. वैश्विक अचेतन ही ब्रह्म है. क्योंकि हमारे सामूहिक अचेतन से ब्रह्म बना इसलिए कहा गया कि विराज से पुरुष बना; और क्योंकि वह ब्रह्म जो संसार को गवर्न कर रहा है इसलिए पुरुष विराज का पिता हुआ. यानी की भौतिक संसार और आत्मिक संसार में लगातार लेन देन चर्चा चल रही है और यह एक दूसरे के पुत्र हैं.

हमारे भौतिक संसार से ब्रह्म बनता है--इसकी पश्चिमी वैज्ञानिकों ने भी चर्चा की है. समाजशास्त्री अमिल डरखाईम ने कहा The interaction in social organizations leads to the collective identity of the members of a labour union. जैसे किसी लेबर यूनियन के तमाम सदस्यों की जो आपसी तरंगे हैं वह मिल करके एक सामूहिक पर्सनालिटी बनाती है. वे आगे कहते हैं कि यह जो सामूहिक पर्सनालिटी है It forms a determinate system with its own life it is different from individual consciences. यानी इस सामूहिक चेतना का अलग जीवन हो जाता है. इसकी अलग पर्सनालिटी हो जाती है. इसी सामूहिक पर्सनालिटी को हम देवता कहते हैं.

मनोवैज्ञानिक कार्ल यूंग कहते हैं कि They elements of collective life exist independently of and are able to exert an influence on the individual. यानी कि हम सबका जो सामूहिक जीवन है इसकी एक स्वतंत्र आइडेंटिटी है जो हम सब से अलग है. यदि हम इस सामूहिक चेतना में सम्पूर्ण विश्व को जोड़ लें तो यूंग शब्द उपयोग करते हैं कि This is the this collective unconscious is the soul of humanity at large. यानी सामूहिक चेतना का सारांश सम्पूर्ण मानवता का सारांश है. यही ब्रह्म है. यही ईश्वर है.

 

ब्रह्म | कार्ल यूंग | अमिल डरखाईम | सामूहिक पर्सनालिटी | सामूहिक चेतना

 

हमारे शरीर में मेरूदंड में सात चक्र हिन्दू सिस्टम के अनुसार होते हैं. इनमें सबसे ऊपर क्राउन चक्र होता है ब्रह्मरंध्र, फिर हमारी आंख के पीछे आज्ञा चक्र, फिर गले में विशुद्धि, हृदय में अनाहट, नाभि पर मणिपुर, उसके नीचे स्वाधिष्ठान और मूलाधार नीचे. विशेष इनके रंग वे लाइट के स्पेक्ट्रम से जुड़ते हैं: ब्रह्मरंध्र को ट्रांसपेरेंट बताया गया, आज्ञा चक्र को सफेद, गले पर पर्पल, अनाहट को नीला, नाभि को पीला, उसके नीचे नारंगी और फिर लाल. ब्रह्मरंध्र से निकलने वाली तरंगों को हम छोड़ दें तो हमारे आज्ञा चक्र से जो तरंगे निकल रही है वह हमारी चेतन या कॉन्शस माइंड हुई; और जो गले से लेकर मूलाधार तक जो हमारे पाँच चक्र है इनसे जो तरंगे निकल रही हैं ये हमारा अचेतन हुआ. मेरे हृदय से निकलने वाली जो अचेतन तरंगे है वह आपके हृदय से निकलने वाली अचेतन तरंगों से मिल रही हैं, जुड़ रही हैं, बातचीत कर रही हैं और सामूहिकता बना रही हैं.

हमारे गले से अचेतन तरंगों का सारांश है हम कहते हैं ब्रह्मा जी. जो हमारे हृदय से निकली उनका जो सारांश हुआ उसे हम कहते हैं शिव भगवान. जो हमारी नाभि से निकली उसे हम कहते हैं विष्णु भगवान. नाभि के नीचे से जो तरंगे निकली उन्हें हम कहते हैं हनुमान, गणेश अथवा वरुण. और जो टेल बोन से निकलती हैं उन्हें हम कहते हैं देवी. इस प्रकार जो पाँच स्तर से जो तरंगें निकल रही हैं उन्हें हम पांच देवताओं के नाम देते हैं.

वास्तव में हमारे मेरुदंड में यह चक्र केवल स्विच के रूप में होते हैं. इन चक्रों  से हमारे मस्तिष्क का कोई हिस्सा एक्टिवेट होता है. जैसे हमने यहां पर स्विच को ऑन किया तो लाइट कहीं और जलती है उसी प्रकार यदि हम अपने नाभि चक्र को एक्टिवेट करते हैं तो उससे हमारे मस्तिष्क का एक विशेष हिस्सा एक्टिवेट हो जाता है. इसलिए पश्चिमी साइंटिस्ट को यह बात समझ में नहीं आती है. वे तमाम इंस्ट्रूमेंट से हमारे हृदय पर रखते हैं और बोलते हैं कि इसमें कोई तरंगे नहीं निकल रही है. बात सही है क्योंकि जिस प्रकार लाइट के स्विच से कोई लाइट नहीं निकलती है लेकिन वह स्विच ही उस लाइट को कंट्रोल करता है उसी तरह चक्र स्वयं विशेष तरंगें नहीं बिखेरता है. जब हम कहते हैं कि पाँच चक्रों से तरंगे निकल रही हैं वास्तव में वह मस्तिष्क के पांच हिस्सों से निकल रही है लेकिन वार्ता के लिए हम कहते हैं कि वह उनके स्विचस से निकल रही है.

सात चक्र | क्राउन चक्र | ब्रह्मरंध्र | आज्ञा चक्र | विशुद्धि | अनाहट | मणिपुर | स्वाधिष्ठान | मूलाधार

हमारे शास्त्रों में इन सात चक्रों का विस्तृत वर्णन है. अथर्ववेद में कहा गया कि समय इन सात चक्रों को खींचता है, इसकी सात नाभियां है.

ऋषिकेश के स्वामी शिवानंद ने अपनी पुस्तक कुंडलिनी योग में कहा The Chakras are centers of vital force presiding Devtas of which are the names for the Universal Consciousness. यानी ये चक्र हमारी मूल आत्मिक शक्ति के केंद्र हैं. इनके जो अध्यक्ष देवता हैं वह देवता हैं.

 

तीन प्रमुख चक्र हैं गले में, हृदय पर, नाभि पर इनसे जो तरंगे निकलती हैं उनके जो सारांश या देवता हैं उन्हें ही हम ब्रह्मा, शिव और विष्णु कहते हैं.

जन्म के पहले ये चक्र मां के गर्भ में जीरो या साफ सुथरे होते हैं. जिस समय जन्म होता है उस समय पहली श्वास के साथ ये सातों चक्र सक्रिय हो जाते हैं. उस समय जो सात ग्रह हैं उनकी जो परिस्थिति होती है उससे ये चक्र प्रभावित हो जाते हैं. सहस्रार चक्र ब्रह्म का स्थान हुआ और इसका पृसाइडिंग ऑफिसर सूर्य हुआ और इसका रंग पारदर्शी हुआ. आंख के पीछे आज्ञा चक्र का पृसाइडिंग ऑफिसर इन्द्र हुए इसका ग्रह चंद्रमा हुआ और इसका रंग सफेद या मटमैला हुआ. गले से विशुद्धि चक्र इसका पृसाइडिंग ऑफिसर ब्रह्मा जी हुए और इसका ग्रह मंगल हुआ और इसका रंग ताम्बे का या पर्पल या बैंजनी हुआ. हृदय के अनाहट चक्र से जो तरंगे निकलती हैं उनका पृसाइडिंग ऑफिसर शिवजी हुए और इसका ग्रह बुद्ध हुआ इसका रंग नीला हुआ. नाभि में मणिपुर चक्र की तरंगों का पृसाइडिंग ऑफिसर विष्णु भगवान हुए इसका ग्रह बृहस्पति हुआ और इसका रंग पीला हुआ. इसीलिए शिव जी को नीलकण्ठ बोलते हैं और विष्णु भगवान को पीताम्बर बोलते हैं. स्वाधिष्ठान चक्र की जो तरंगे निकलती है उनके पृसाइडिंग ऑफिसर को वरुण, गणेश अथवा हनुमान कहते हैं. इनका ग्रह शुक्र हुआ और रंग नारंगी हुआ. मूलाधार चक्र के पृसाइडिंग ऑफिसर काली या देवी हुई इसका ग्रह शनि हुआ और इसका रंग गहरा लाल हुआ.

स्वामी शिवानंद | आत्मिक शक्ति | कुंडलिनी योग | ब्रह्मा, शिव और विष्णु | पृसाइडिंग ऑफिसर | ग्रह

 

सूर्य की लाइट को स्पेक्ट्रम से सात रंगों में बांटा जा सकता है. इसी प्रकार हमारी मूल चेतना है के सात विभाजन हो जाते हैं और ये सात चक्र हुए.

इस बात को आदि शंकराचार्य जी ने अपनी पुस्तक “यती दण्ड ऐश्वर्य विधानम” में बताया है. उनका कहना है The devtas located in the chakras tremble by the movement of consciousness in the spinal cord. यहाँ स्पष्ट कह रहे हैं कि देवता हमारे चक्रों में स्थापित हैं और ये थरथराते हैं. इससे ही तमाम तरंगे बनती हैं.

यदि हमें अपने चक्रों को प्रभावित करना है तो हम एस्ट्रोलॉजी से उन रंगों का, उन गंध का, उन आकृतियों से प्रभावित किया जा सकता है. जैसे यदि आपको अपने को शांत करना है, शिव की तरह शांत रहना है तो आप नीले रंग का प्रयोग करें. यदि आपको सक्रिय होना है तो आप पीले रंग का प्रयोग कीजिए. इस प्रकार हमारी एस्ट्रोलॉजी इन चक्रों को मैनेज करती है.

स्पेक्ट्रम | मूल चेतना | शंकराचार्य जी | यती दण्ड ऐश्वर्य विधानम | एस्ट्रोलॉजी see full video: https://youtu.be/O__LaORJ39I

इस विषय पर मैंने एक विस्तृत पर्चा International Journal of Theology, Philosophy of Science में प्रकाशित किया है https://www.commonprophets.com/hindu-cosmology-modern-psychology/

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